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बच्चे की देखभाल – कैसे सुलाएँ अपने बच्चे को

Child care tips hindi - Sleep care tips of children in hindi

कहते हैं एक व्यक्ति को सेहतमंद बने रहने के लिये पूरी अथवा समुचित नींद अत्यंत जरूरी है। इसके अभाव में सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। नींद बच्चों के लिये भी उतनी ही जरूरी है जितना यह व्यस्कों के लिये है। अक्सर अभिभावक अपने घर में जन्म लेने वाले नये मेहमान के नींद की अवधि को जानने को उत्सुक दिखते हैं। इसके लिये अपने बड़े-बुजुर्गों के अलावा वो सम्बन्धियों, दोस्तों और पड़ोसियों के सामने भी अपनी इस उत्सुकता को जाहिर करते हैं।

सही जानकारी न मिलने से वो ऊहापोह की स्थिति में रहते हैं। इस असमंजस की स्थिति से मुक्ति पाने का एक ही तरीका यह जानना है कि वास्तव में एक बच्चे को कितनी देर और कैसे सुलाना चाहिये। अभिभावकों की इन्हीं चिंताओं को ध्यान में रख इससे सम्बन्धित जानकारी का संग्रहण किया गया है।

बच्चों को चाहिये कितनी देर की नींद 

जन्म के बाद बच्चे साधारण रूप से केवल माँ का दूध पीने के लिये ही जगते हैं। सामान्य तौर पर यह देखा गया है कि बच्चे अक्सर 21 से 22 घंटों की नींद लेते हैं। इस नींद से वो तब जागते हैं जब उन्हें भूख लगती है। वास्तव में शर्तिया तौर पर बच्चों के सोने की सटीक अवधि बतायी ही नहीं जा सकती। यह बच्चे पर निर्भर है कि वह कितनी देर की नींद लेता है।

सुलाते समय ये हैं ध्यान में रखने वाली बातें

कहाँ सुलाएँ अपने बच्चे को

बच्चों को सुलाते समय कुछ चीजों को ध्यान में रखना जरूरी होता है ताकि बच्चा चैन की नींद सो सके। इसमें एक अत्यंत महत्तवपूर्ण बात है कि आपका बच्चे का पेट भरा हो। बच्चे को सुलाते समय यह भी ध्यान रखें कि किसी भी तरह से वह मक्खी-मच्छरों, कीटों से दूर रहे। इसके लिये मच्छरदानी आदि का प्रयोग करें। घर-आँगन को साफ-सुथरा रखें।

हवादार कमरे

बच्चे को हवादार कमरे में सुलाएँ। यह भी ध्यान रखें कि बच्चे का कमरा अत्यधिक गरम न हो। अत्यधिक गरम कमरों में लेटे हुए बच्चे सो नहीं पाते। रह-रहकर उन्हें बेचैनी महसूस होती है। इससे उनके नींद में खलल पड़ती है। सोते समय बच्चे के मुँह को कपड़ों से न ढ़कें। इससे उन्हें साँस लेने में परेशानी हो सकती है।

ज्यों-ज्यों बच्चे की आयु बढ़ती जाती है उसके सोने की अवधि घटती जाती है। यह स्वाभाविक है। कभी करीब 22 घंटे सोने वाले बच्चे बड़े होने पर 6 से 8 घंटों की ही नींद लेते हैं। एक वर्ष की आयु के बच्चे दिन में दो बार ही सोते हैं। इससे ज्यादा आयु के बच्चे दुनियावी रीतियों-रस्मों में इतने रम जाते हैं कि दिन में सोने की उनकी आदत जाती रहती है। बच्चे कई बार एक ही स्थान पर सोने की आदत के कारण दूसरे स्थानों पर उसी आसानी से सो नहीं पाते।

ऐसे लिटाएँ अपने बच्चे को

यूँ तो बच्चे पीठ के बल लेटते हैं, लेकिन आयु बढ़ने के साथ वो पेट के बल भी लेटने लगते हैं। यह उनके लिये फायदेमंद भी होती है क्योंकि इसके कारण उनके पेट की वायु दबाव के कारण बाहर निकल जाती है। पेट के बल न लेटने के कई बार दुष्परिणाम भी सामने आते हैं। इसमें से एक है वायु दबाव के कारण बच्चे का पेट फूल जाता है और वह रोते रहता है। इसके जड़ में उसके पेट में होने वाला दर्द है। कई बार भूलवश भोजन के बाद ही बच्चे को पेट के बल लिटा दिया जाता है। ऐसे कई मामलों में बच्चे खाये हुए भोजन को मुँह के जरिये बाहर निकाल देते हैं। इसलिये हमेशा यह ध्यान रखें कि दूध पिलाने अथवा भोजन खिलाने के तुरंत बाद बच्चे को पेट के बल न लेटने दें।

क्यों जरूरी है मुलायम-सा तकिया

बच्चे को सुलाते समय यह भी ध्यान रखें कि उसके सिर के नीचे एक तकिया हो। उस तकिये की अवस्थिति ऐसी होनी चाहिये कि पेट की अपेक्षा बच्चे का सिर थोड़ा ऊँचा हो। माना जाता है कि भोजन के तुरंत बाद बच्चे को दायीं करवट सुलाने से शीघ्र ही भोजन उसके आंतों में पहुँचता है। बच्चों को कभी भी तेज धूप में न सुलाएँ। यह बच्चों की मुलायम त्वचा को नुकसान पहुँचा सकती है।

खिली-खिली धूप भी है जरूरी

घरों में बच्चों को सुलाते समय अवस्थिति ऐसी होनी चाहिये की बच्चे को हल्की-हल्की धूप लग सके। यह धूप उनके लिये जरूरी है क्योंकि इसी के हिसाब से वो अपने शरीर के तापमान को अपने अनुकूल बनाते हैं। यह धूप इसलिये भी जरूरी है क्योंकि इससे विटामिन-डी मिलता है जो अंतत: उनकी हड्डियों को मज़बूत बनाकर उनके जीवन की सेहतमंद नींव तैयार करने में सहायक होता है। इसलिये अब अगर आप अपने बच्चे को सुलाने जा रहे हों तो इन बातों का आवश्यक रूप से ख्याल रखें।

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