योग मुद्रा

पाशिनी योग मुद्रा की विधि, लाभ और सावधानियां

Pashini yoga mudra steps, benefits and precautions in hindi.

पाशिनी मुद्रा की विधि, लाभ, सावधानियां - इसके फायदे मेरुदंड, थायरायड, कुंडलिनी जागरण और नर्वस सिस्टम में होते हैं, pashini yoga mudra benefits in hindi.

कमर दर्द और गर्दन दर्द यह एक ऐसे समस्या है जिससे हर कोई परेशान है। यह समस्या उन लोगों के साथ सबसे ज्यादा है जो कंप्यूटर के सामने घंटों काम करते हैं। इसका सबसे बड़ा उपाय है कि आप नियमित रूप से पाशिनी योग मुद्रा कीजिए। इससे न केवल कमर दर्द और गर्दन के दर्द सही होते हैं बल्कि रीढ़ की हड्डी भी लचीली होती है। अपने दोनों पैरों को गर्दन के पीछे रखकर पाश के समान दृढ़ता पूर्वक बंधन करना ही पाशिनी मुद्रा कहलाता है।

पाशिनी योग मुद्रा की विधि

इस मुद्रा को किस प्रकार किया जाता है आइये जानते हैं
#1 इस आसन को करने के लिए सबसे पहले जमीन पर लेट जाएं और अपने दोनों हाथों को जाघों के पास जमीन पर रखें।
#2 अब अपने हाथों पर जोर डालते हुए दोनों पैर नितंब और धड़ को ऊपर की ओर उठायें एंव अपने पैरों को सिर के पीछे लाकर जमीन के साथ स्पर्श करवाएं।
#3 जमीन के साथ स्पर्श किये हुए पैरों में लगभग आधा मीटर का गैप करें।
#4 अपने घुटनों को मोड़कर जाघों को छाती के साथ स्पर्श करवाएं इस स्तिथि में आपके घुटने कान और कंधों के साथ स्पर्श होने चाहिए।
#5 अपने हाथों को मजबूती से पैरों के पीछे लपेट लें फिर धीरे-धीरे दीर्घ शवासन करें।
#6 अपनी चेतना को मूलाधार चक्र पर रखें।
#7 पाशिनी मुद्रा में आकर जितने समय तक आप रुक सकते हो रुको बाद में धीरे-धीरे करके अपने पैरों को खोल लें, फिर दो मिनट तक विश्राम करने के बाद फिर इसे दोहराएं।
#8 इस क्रिया को तीन बार करना चाहिए।

पाशिनी योग मुद्रा के लाभ

इस मुद्रा के द्वारा हमारे शरीर को बहुत से लाभ प्राप्त होते हैं जैसे कि

1. पाशिनी मुद्रा के अभ्यास से नर्वस सिस्टम में संतुलन और स्थिरता आती है।
2. इससे मेरुदंड और उसके चारो ओर की नाडिया क्रियाशील बनती है।
3. इससे प्रजनन अंगों से संबंधित रोग दूर होते हैं।
4. इसके नियमित अभ्यास से थायराइड ग्रन्थि से संबंधित रोगों से छुटकारा मिलता है।
5. इस मुद्रा द्वारा कुंडलिनी जागरण में बहुत ही फायदा मिलता है।

पाशिनी योग मुद्रा – सावधानियां

इस मुद्रा को करते समय जो सावधानियां बरतनी चाहिए वो इस प्रकार से हैं…

  1. इस के अभ्यास को खाली पेट करना चाहिए।
  2. जब आप इसे शुरू करते हो तब आप को इसे धीरे-धीरे करना चाहिए।
  3. जिन लोगों को रीढ़ से संबंधित किसी प्रकार का कोई रोग होता है जैसे – स्लिप डिस्क आदि तो इसे नहीं करना चाहिए।
  4. उच्च रक्तचाप के रोगी को इस मुद्रा से दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
  5. हर्निया से पीड़ित रोगियों को इस मुद्रा से दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
  6. कंधों या गर्दन में दर्द होने पर इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  7. गुर्दे की पथरी या अन्य रोग होने पर इसे नहीं करना चाहिए।

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