गर्भासन की विधि और लाभ

आज के समय में उत्तेजित, क्रोधित या असंतुष्ट मन एक समस्या बन चुका है। यदि आप इससे छुटकारा पाना चाहते हैं तो गर्भासन का सहारा लीजिए। यह एक योग आसन है जिसके जरिए आप न केवल खुद को शांत कर सकते हैं बल्कि शरीर को संतुलित और पाचन-तंत्र को ठीक भी कर सकते हैं। 

 

गर्भासन की विधि 

पदासन में बैठकर हाथों को पिंडलियों और जांघों के बीच इतना अन्दर डालिए कि कुहनियां पिंडलियों में से आसानी से ऊपर मोड़ी जा सकें। हाथों को ऊपर की ओर मोड़िये और कानों को पकड़िये तथा सारे शरीर के भार को नितम्बों पर रखिये। आराम से जब तक सम्भव हो, इसी स्थिति में रूकिये। अब पैरों को नीचे कर लीजिये और हाथों को बाहर निकाल लीजिये। 

 

इस अवस्था में कानों को हाथों से पकड़ते समय श्वास बाहर छोड़िये। अंतिम स्थिति में साधारण रूप से श्वास लीजिये। शरीर को ठीक तरह से साधने या श्वास-प्रक्रिया पर आप एकाग्रता भी हो सकते हैं। 

 

गर्भासन के लाभ 

 

1. शरीर को हल्का और रक्त संचार को बढ़ाने में मददगार है यह आसन। 

2. उत्तेजित, क्रोधित और् असंतुष्ट मन को शांत करने में यह आसन सहायक है। 

3. यह शरीर को संतुलित करता है। 

4. यह स्नायु-दौर्बल्यता को भी दूर करता है। 

5. खुद पर काबू न पा सकने वाले स्वभाव के व्यक्तियों को इस आसन का अभ्यास दिन में जितनी बार भी सम्भव हो सके, करना चाहिये। 

6. पाचन-तंत्र को उत्तेजित करता है तथा भूख को बढ़ाता है। 

7. ऐसा माना जाता है कि गर्भाशय संबंधित समस्या इस आसन के जरिए दूर किए जा सकते हैं। 

8. इस आसन से रीढ़ की हड्डी मजबूत व लचीली होती है।

 

सावधानियां: 

शुरुआत में इस आसन को करते समय कठिनाइयां होगी लेकिन अभ्यास के साथ इस आसन को आसानी से किया जा सकता है। अगर आपसे यह आसन नहीं हो रहा है तो जबरदस्ती न करें। इस आसन का अभ्यास खाली पेट करें अथवा भोजन के तीन से चार घंटे के बाद कर सकते हैं। गर्भवती महिलाओं को इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए। प्रसव के 40 दिन बाद से पुन: इसका अभ्यास किया जा सकता है। साथ ही जिन्हें कमर और पीठ दर्द की समस्या हो उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए।