बच्चों से जुड़े कुछ अंधविश्वास और निवारण

बच्चों के जन्म के बाद उसे सेहतमंद बनाने के लिये उसका लालन-पोषण किया जाता है। लालन-पोषण के शुरूआती चरणों से लेकर कुछ वर्षों तक अभिभावकों को समाज में प्रचलित अंधविश्वासों से जद्दोजेहद करनी पड़ती है। कई लोग इसे नहीं मानते जबकि अनेक अनपढ से लेकर पढ़े-लिखे लोग इन अंधविश्वासों के साये में अपने बच्चों का लालन-पोषण करते हैं। 

समाज में प्रचलित ऐसे अनेक अंधविश्वासों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। ऐसे कई अंधविश्वास गर्भवती स्त्रियों और उनके होने वाले बच्चों से जुड़े हैं। गर्भ धारण करने के दौरान स्त्रियों को अपनी इच्छानुसार कई चीजों को खाने का मन होता है। इन चीजों में से खट्टी चीजें उन्हें रूचिकर लगती है और इसलिये वो इन्हें खाने की इच्छा जाहिर करती हैं। 

परिवार के कुछ बुजुर्ग सदस्यों के मन में यह धारणा होती है कि गर्भधारण करने वाली स्त्रियों को उनकी इच्छानुसार खाना नहीं देने से होने वाले शिशु पर नकारात्मक असर हो सकता है। इसका परिणाम यह होता है कि गर्भधारण करने वाली स्त्रियाँ अपनी मर्जी के मुताबिक खाना खाती है। वास्तव में इसका परिणाम यह होता है कि गर्भवती स्त्रियों को उनके लिये जरूरी पोषक व संतुलित आहार नहीं मिल पाता है जो होने वाले शिशु के लिये नुकसानदायक हो सकता है। 

कई परिवारों में यह अन्धविश्वास प्रचलित है कि प्रसव के करीब एक सप्ताह तक माँ को अन्न अथवा जल नहीं दिया जाये। यह एक ऐसा अन्धविश्वास है जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। वास्तव में प्रसव के बाद स्त्रियाँ रक्त के बहने और थकावट के कारण कमजोर हो जाती है। इसलिये प्रसूति के लिये प्रसव के बाद पौष्टिक भोजन और अन्य पदार्थ जैसे जल इत्यादि बेहद जरूरी होते हैं। शरीर में जल की कमी और रक्त के अधिक बह जाने से प्रसूति के शरीरमें रक्त का संचार मंद हो जाता है। इससे रक्त के जमने में समस्या होती है और प्रसूति की मृत्यु की सम्भावना भी बढ़ जाती है। 

एक अन्य प्रचलित अंधविश्वास यह है कि सूर्यग्रहण अथवा चन्द्रग्रहण के दौरान माता को घर में ऐसे रखा जाता है कि उस पर इन किरणों का साया भी न पड़े। इस दौरान खिड़कियों या कमरों को बंद भी रखा जाता है ताकि इन किरणों का प्रवेश अंदर न हो सके। इस विषय पर बद्धिजीवियों में भी एकमत नहीं है। कुछ बुद्धिजीवी मानते हैं कि ब्रह्मांड की अंतरिक्ष-किरणें यानी कॉस्मिक-रे से गर्भ में पल रहे शिशु को हानि हो सकती है। 

गाँवों में प्रसूति के दौरान दाई बच्चे की नाल में गोबर लगाती हैं। इससे बच्चों में टेटनस का खतरा बढ़ जाता है। अभिभावक अपने बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिये काजल या सुरमा लगा देते हैं। अक्सर इसके कारण बच्चों में सीसे का जहर फैलने की सम्भावना होती है। सीसा हड्डियों में जमा हो जाता है और रक्त के निर्माण में अवरोध खड़ा करता है। यह सीसे का दुष्प्रभाव ही है कि इससे लकवा, शारीरिक और मानसिक वृद्धि में रूकावट इत्यादि जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। अगर फिर भी अभिभावकों को लगता है कि बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिये काजल या सुरमा लगाना जरूरी है तो यह बच्चों के माथे पर लगाएँ।