डर और घबराहट में हमारा दिमाग कैसे करता है काम ?

डरावनी काली रात में घने जंगल के बीच जानवरों की अजीब आवाजें,सन्नाटे से भरे माहौल में दरवाज़ा खुलने की आवाज़,तकिये की नीचे से निकलता हाथ या अकेले कमरे में किसी के आने की आहाट के दृश्य अक्सर आपकी धडकनों की गति बढ़ा देते हैं। आप सभी ने ये दृश्य कभी न कभी किसी डरावनी फिल्मों में देखे होंगे।…कभी हिम्मत दिखाते हुए या कभी बचपन में बड़ों के पीछे छुपते हुए..लेकिन आज हम बात करेंगे की किस तरह हाल ही में हुई शोधों में सामने आया है कि डरावनी फिल्में हमारी यह समझने में मदद करती है कि हमारा मस्तिष्क डर और घबराहट में कैसे काम करता है,यह इनके लिए कैसे तैयार होता है। पर यह होता कैसे है आइए जानते है…

वैज्ञानिकों ने डरावनी फिल्मों के दृश्यों का इस्तेमाल मानव शरीर के श्नायु तंत्र से जुड़े ऐसे मूल रास्ते को खोज निकालने में किया है जो यह बताता है कि हमारा दिमाग डर और घबराहट जैसी भावनाओं पर कैसे काम करता है। इस खोज के द्वारा दिमागी विकारो को दूर करने के नए रास्ते के लिए पृष्ठभूमि तैयार होगी।

इससे लोग कुछ डरावनी घटनाओं को याद रखने के लिए उत्प्रेरित होते है, क्यूंकि यह सूचना उनके दैनिक उत्तरजीविता के लिए जरूरी होती है,लेकिन ज्यादा डर का प्रस्तुतीकरण घबराहट और अन्य दिमागी विकार उत्पन्न कर सकता है। अभी तक डर को दर्शाने वाले ब्रेन सर्किट का मापन कृंतक प्राणियों (RODENTS) पर ही किया जाता था। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने डर और घबराहट की पहचान करने के लिए श्नायु गतिविधियों का मापन 9 ड़रावनी फ़िल्में देखते हुए लोगों के अम्यग्दाला (AMYGDALA-यह महुष्य के शरीर के दिमाग का वः हिस्सा होता है जो डर की पहचान और आपातकालीन घटनाओं के लिए तैयार करने के लिए उत्तरदायी होता है) और हिप्पोकैम्पस (HIPPOCAMPUS-दिमाग का वः हिस्सा जो भावनाओं,मेमोरी इत्यादि से जुड़ा होता है) में इलेक्ट्रोडस डालकर किया है। यह गहराई में स्थापित इलेक्ट्रोड्स दिमाग में प्रत्येक मिलिसेकंड नयूरोंस की स्थति की जांच वास्तव में यह दर्शाने के लिए करते है कि हमारा दिमाग डर जैसी स्थिति का सामना कैसे करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य के केंद्र में स्थापित ये दो क्षेत्र भावनात्मक परिस्थतियों का सामना करने और उनको यादों में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए सीधे तौर पर संकेतों की अदलाबदली का काम का काम करते हैं।

वास्तव में अम्य्ग्दाला,हिप्पोकैम्पस से 120 मिलिसेकंड पहले ही नयूरोंस को छोड़ देता है। यह अपने आप में उल्लेखनीय है कि हम इस प्रकार दिमागी गतिविधियों को इतनी सटीकता के साथ माप सकते हैं। इन दोनों दिमागी हिस्सों के बीच ट्रैफिक पैटर्न फिल्म के भावनात्मक पहलु द्वारा नियंत्रित होता है, अम्य्ग्दाला से हिप्पोकैम्पस के बीच अनियंत्रित सूचना का बहाव केवल तब होता है जब लोग डरावनी फिल्म देखते हैं ऐसा तब नहीं होता जब लोग कोई शांत फिल्म देखते है।

मानव और जानवरों पर की गई शोधों ने यह साबित किया है कि अम्य्ग्दाला किस प्रकार डर और घबराहट का सामना करने में अपना काम करता है। इसी के साथ किस प्रकार हिप्पोकैम्पस भावनात्मक घटनाओं की मेमोरी प्रोसेसिंग को बढाता है। इससे पहले इस बात की जानकारी नहीं थी कि दिमाग में पास-पास मौजूद ये दोनों हिस्से डर की पहचान की स्थिति में कैसे पारस्परिक व्यवहार करते हैं क्यूंकि ज्यादातर शोधों में दिमाग का एकाकी अध्यान किया जाता रहा है। परन्तु हाल ही में हुई शोधों से अम्य्ग्दाला और हिप्पोकैम्पस के कार्यो पर व्यापक जानकारी मिलती है। इसमें इस बात के प्रमाण मिलते है कि अम्य्ग्दाला पहले भावनात्मक तौर पर प्रासंगिक बातों को एक्सट्रेक्ट करता है फिर यह सूचना हिप्पोकैम्पस को मेमोरी निर्माण के लिए भेजता है।

इस प्रकार की खोजों से दिमागी समस्यों को समझने और हल करने में जाहिर तौर पर जरूरी मदद मिलती है।