हकलाने के कारण, लक्षण और उपाय

हकलाना एक न्यूरोलॉजिकल समस्या है, जो कि मस्तिष्क की वायरिंग से संबंधित है। ब्रिटिश सटैमरिंग एशोसिएशन की रिपोर्ट के मुताबिक हकलाने वालों के मस्तिष्क की वायरिंग दूसरे व्यक्तयों से अलग होती है। सीधे शब्दों में कहे तो तो हकलाने वाले व्यक्ति कि मस्तिष्क की वायरिंग इतनी घुमावदार होती है कि मस्तिष्क सूचनाएं देर से पहुंचा पाता है। जबकि मुंख पहले कार्य करने लगता है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि हकलाने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क में एक रासायनिक तत्व डोपामाइन की मात्रा बहुत अधिक हो सकती है। वैज्ञानिक के कई दल हकलाने की दवा खोजने में कार्यरत है। हालांकि सभी हकलाने वालों में ये समस्या नहीं होती है। अकसर दो से चार वर्ष की उम्र में होती है, जो आमतौर पर सात या आठ साल की उम्र तक बनी रहती है, और थोड़ा ध्यान देने से इस बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है। हालांकि हकलाहट किशोरावस्था में भी साथ बनी रहती है, जो कि एक रोग की तरह होती है।

आनुवांशिकता-

हकलाहट काफ़ी हद तक आनुवंशिक होती है। अगर किसी का कोई निकट संबंधी इससे जूझ रहा है तो उस व्यक्ति के इससे प्रभावित होने के आसार काफ़ी ज़्यादा है।

हकलाने के लक्षण –

बोलने और शब्दों के उच्चारण में समस्या होती है। बोलते समय आंखे भीचना, होठों में कंपकंपाहट और जमीन पर थपथपाना, आंखें मिलाकर बात न कर पाना। इसके साथ ही हकलाने वाले शब्दों को दोहराते है या उन्हें लंबा करके बोलते हैं। अक्सर हकलाने वाला व्यक्ति बोलते-बोलते रुक जाते है और वहीं कई शब्दों की आवाज़ ही नहीं निकाल पाता है। 

हकलाने के उपाय –

हकलाने की समस्या के लिए अभी तक किसी भी दवा को विकसित नहीं किया गया है। 1970 में किये गये एक शोध में ये बात सामने आई थी कि हैलोपेरिडोल नामक दवा जिसका उपयोग स्कित्ज़ोफ़्रेनिया जैसी बीमारियों के लिये किया जाता था उससे हकलाने की समस्या को भी कुछ हद तक कम करने मे सफलता मिली थी। लेकिन उस दवा के दुष्प्रभाव से उसके प्रयोग पर रोक लगा दी गई।

स्पीच थैरेपी –

स्पीच थैरेपी की मदद से हकलाने की समस्या को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। हैं। एक्टर ऋतिक रोशन को भी किशोरावस्था में हकलाहट की समस्या थी। स्पीच थैरेपी से ही उनके हकलाने की समस्या दूर हो सकी। हालांकि खबर है कि ऋतिक रोशन अभ भी स्पीच थैरेपी लेते हैं। इसके साथ ही स्वयं सहायता समूह ‘द इंडियन स्टेमरिंग एसोसिएशन’ (टीसा) की भी मदद ले सकते हैं। टीसा हकलाने वाले व्यक्तियों को एक मंच प्रदान करता है। यहां हकलाहट को नियंत्रित कर बेहतर संवाद के गुर सीखने को मिलते हैं।

हकलाने के आयुर्वेदिक उपचार

नियमित रूप से एक आँवले का सेवन करने से हकलाहट कम होती है । सुबह सवेरे एक चम्मच सूखे आँवले का पाउडर और एक चम्मच देसी घी का सेवन करने से भी हकलाहट में लाभ मिलता है। हकलाहट दूर करने के लिए 10 बादाम और 10 काली मिर्च मिश्री के साथ पीस कर दस दिन तक सेवन करें। सोने से पहले छुआरों का सेवन करें पर कम से कम 2 घंटों तक पानी न पीयें। इससे आवाज़ भी साफ़ हो जायेगी और हकलाहट भी दूर हो जायेगी।