टिटनेस रोग के लक्षण और उपचार

टिटनेस एक संक्रामक बैक्टीरिया से होने वाला रोग है। इस बैक्टीरिया को बैक्टीरियम क्लोस्ट्रीडियम कहा जाता है, जो कि आमतौर पर मिट्टी, धूल और जानवरों के मल में पाया जाता है। टिटनेस एक घातक रोग है, जिससे लोगों की मौत तक हो जाती है। टिटनेस रोग में कंकालपेशियों को नियंत्रित करने वाली तंत्रिका-कोशिकाएँ प्रभावित होतीं हैं। टिटनेस का बैक्टीरिया मानव शरीर में आमतौर पर फटे हुए घावों से पहुंचता है। यह घाव जंग लगी कीलों, धातु के टुकड़ों या कीड़ों के काटने, जलने से हो सकते हैं। हालांकि नवजात शिशुओं में इस रोग के नाभि के जरिए फैलने की संभावना रहती है।

टिटनेस रोग के इलाज के लिए वेक्सीन की खोज 1890 में जर्मन के एक वैज्ञानिक समूह ने की थी, जिसका नेतृत्व एमिल वॉन बेहरिंग ने किया था। हालांकि इस वैक्सीन के कई साइड इफेक्ट्स भी थे। जिसके बाद 1992 में दो नई वैक्सीन लांच की गयी। जो कि डिप्थीरिया औ टिटनेस दोनों रोग के इलाज के लिए थी।

टिटनेस रोग लक्षण

टिटनेस होने पर सिर दर्द और बुखार के साथ पसीना छूटता है। चिड़चिड़ापन और झुनझुनी भी इसका एक लक्षण है। इसके साथ ही खाने को चबाने और निगलने और सांस लेने में भी परेशानी महसूस होती है। वहीं ज्यादातर लोगो में मांसपेशियों मे ऐंठन, जबड़े और गर्दन की मांसपेशियों में खिंचाव और दिल की धड़कन के तेज और धीमी होने की शिकायत रहती है। हालांकि टिटनेस के लक्षण बैक्टीरिया के शरीर में प्रवेश करने के बाद छह से 10 दिन बाद दिखाई देने शुरू होते हैं। हालांकि नवजात शिशु में इस रोग का लक्षण जन्म के तीन से 28 दिन में होता है।

टिटनेस रोग इलाज

टिटनेस रोग ज्यादातर शरीर में हुए घाव से फैलता है, ऐसे में यह ध्यान रखना चाहिए कि जब भी शरीर में कोई घाव या कट हो तो उसकी एंटिसेप्टिक से साफ-सफाई करनी चाहिए। अगर इसके बाद भी टिटनेस के लक्षण महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। हालांकि टिटनेस रोग के इलाज के लिए सबसे बेहतर टीकाकरण होता है। बच्चों के जन्म के सयम ही यह टीके लगाए जाते हैं। टीकाकरण द्वारा टेटनस से पूरी तरह बचाव संभव है। 1920 के दशक में शुरू किया गया टेटनस टॉक्सॉयड सबसे सुरक्षित साबित हुआ है। टेटनस टॉक्सॉयड किसी भी टीके के रूप में आमतौर पर आसानी से उपलब्ध है। इसे शिशुओं के आरंभिक टीकाकरण के लिए डिप्थेरिया टॉक्सॉयड और पर्टूसिस वैक्सीन (डीटीपी) और बड़ों तथा बच्चों के टीकाकरण के लिए कम किये हुए डिप्थेरिया टॉक्सॉयड (टीडी) के साथ मिलाया जा सकता है।

वयस्कों के आरंभिक टीकाकरण के लिए चार से छह सप्ताह के अंतराल पर टेटनस टॉक्सॉयड की दो खुराक दी जाती है, जबकि छह से 12 महीने बाद तीसरी खुराक दी जाती है। ध्यान रहे कि गर्भवती मां को दो टिटनेस के टीके जरूर लगवाना चाहिए, जिससे डिलेवरी के समय बच्चे को टिटनेस का डर नहीं रहता। इसके साथ ही टिटनेस रोग के लक्षण थोड़ी देर से महसूस होते है। ऐसे में अपनी शरीर में होने वाले बदलावों पर ध्यान से नजर रखनी चाहिए औऱ कुछ भी अलग महसूस हो तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

सवधानियां 

कटने के दौरान धूल या गोबर से बचकर रहना चाहिए। इससे टिटनेस बैक्टीरिया अंदर जाती है और संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है।

जहां शरीर के चोट लगने या छिलने का खतरा रहता हो वहां जाने से बचना चाहिए।

गर्भवती महिलाएं और टिटनेस

डॉक्टरों के मुताबिक गर्भवती महिलाओं को अपने और अपने शिशु के स्वास्थ्य के लिए समय पर टिटनेस का टीका लगाना जरूरी है। टिटनेस के टीके से मां के साथ-साथ बच्चे को भी संक्रमण से बचाया जा सकता है। हालांकि इससे कई और तरह के लाभ भी हैं।

1. टिटनेस का टीका बच्चे और मां को बैक्टीरियल संक्रमण से बचाता है।
2. इससे गर्भवती महिलाएं और बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। जिससे कई तरह के बीमारियों से लड़ा जा सकता है।
3. ऐसा माना जाता है कि टिटनेस के टीके से प्रसव के दौरान गंभीर समस्याओं को टाला जा सकता है। इसके अलवा इससे शिशु का पूर्ण विकास भी होता है।