मूलबंध की विधि और लाभ

गुदाद्वार को सर्वथा बंद करने को मूलबंध कहा जाता है। मूलबंध का जब हम नियमित रूप से अभ्यास करते हैं तो अपान वायु पूर्णरुपेण नियंत्रित हो जाती है । इसके साथ में उदर रोग से भी मुक्ति मिलती है। मूलबंध को करते समय हमें वीर्य रोग का सामना नहीं करना पड़ता। इसको करने से हमारी आयु अधिक हो जाती है, सभी बंधो में मूलबंध सर्वोच्च और हमारे शरीर के लिए अत्यंत उपयोगी होता है, मूलबंध , बंध योग का ही एक प्रकार है ।

मूलबंध की विधि

मूलबंध को किस प्रकार से किया जाता है आज हम आपको इस के बारे में बताते हैं। इसको करने की विधि इस प्रकार से है…

  1. सबसे पहले किसी समतल जगह पर दरी या कंबल को बिछा लें।
  2. अपने बाएँ पैर की एड़ी से गुदाद्वार को दबाकर रखें।
  3. फिर दाएं पैर को बाएँ पैर की जांघ पर रखकर सिद्धासन में बैठ जाएं।
  4. अपने गुदा को संकुचित करते हुए नीचे की वायु को ऊपर की और खींचने का अभ्यास करें। सिद्धासन में एड़ी के द्वारा ही आप इसको कर सकते हैं।
  5. जब भी आप सिद्धासन में बैठते हो तो आप के दोनों घुटने जमीन को छुते हुए होने चाहिए और आप की हथेलियाँ उन घुटनों के ऊपर टिकी हुई होनी चाहिए ।
  6. अब गहरी सांस लेकर वायु को अंदर ही रोक लें।
  7. अब गुदाद्वार को अच्छी तरह से सिकोड़ लें।
  8. अब अपनी सांस को रोककर रखने के साथ आरामदायक समयावधि तक बंध को बनाएं।
  9. इस अवस्था में जालन्धर बंध भी लगाकर रखें और फिर मूलाधार का संकुचन छोड़कर जालन्धर बंध को धीरे-धीरे करके खोल दें और धीरे से अपनी सांस को बाहर छोड़ दें।
  10. इस अभ्यास को चार से पांच बार तक करें।
  11. इसका अभ्यास करते समय योग एक्सपर्ट की राय जरूर ले लें.

मूलबंध के फायदे

मूलबंध करने से हमारे शरीर को बहुत से फायदे मिलते हैं, जो इस प्रकार से हैं…

  1. जब भी हम मूलबंध को नियमित रूप से करते हैं तो हमारे शरीर का कब्ज का रोग समाप्त हो जाता है।
  2. इसको करने से हमारी भूख बढ़ती है।
  3. यह क्रिया उनके लिए बहुत ही फायदेमंद होती है जिन लोगों को हर्निया या पाइल्स की शिकायत होती है।
  4. इसको नियमित रूप से करने से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है और हम कई तरह की बीमारियों से बच सकते हैं।
  5. जब भी हमें थकान महसूस होती है तब हमें मूलबंध क्रिया को करना चाहिए। क्योंकि इसको करने से हमारी सारी थकान दूर हो जाती है।
  6. इसको करने से हमारी सुस्ती नष्ट हो जाती है ।

मूलबंध सावधानियां

यौन और उदर रोग होने की स्तिथि में इस क्रिया का अभ्यास किसी योगाचार्य के निर्देशन में ही करना चाहिए।