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किन पदार्थों से मिलकर बनता है खून, क्यों हैं उनकी अहमियत

Know how blood is created in body in hindi

शरीर में खून को जीवन-धारा की संज्ञा दी गयी है. खून शरीर के लिये अत्यंत उपयोगी है. शरीर में इसकी उपयोगिता को समझने के लिये इसके तत्वों के बारे में जानना जरूरी है. सामान्य तौर पर धमनियों में बहने वाला शुद्ध खून लाल रंग का तरल पदार्थ लगता है. हालांकि, अणुवीक्षण यंत्र से देखने पर इसके अलग-अलग तत्व दिखायी पड़ जाते हैं. वास्तव में खून निम्नलिखित पदार्थों से मिलकर बना होता है: खून-रस जिसे प्लाज्मा कहा जाता है, रक्ताणु और श्वेताणु. जानिये खून के इन तत्वों के बारे में-

खून-रस या रक्त-रस

खून रस यानी प्लाज्मा एक हल्का पीले रंग का तरल पदार्थ है. खून रस में नब्बे प्रतिशत जल और शेष दस प्रतिशत में अन्य पदार्थ जैसे-प्रोटीन,चर्बी, मैग्नीशिया, फाइब्रिन नामक तंतु आदि होते हैं. इससे आशय यह है कि इस दस प्रतिशत में शरीर के लिये जरूरी सभी पोषक तत्व और व्यर्थ पदार्थ जैसे लवण, ऑक्सीजन, कार्बन डाइ ऑक्साइड, नाइट्रोजन, यूरिक एसिड आदि होते हैं. 

खून-रस में ही श्वेत और लाल कण तैरते हैं. मानव जीवन भी इसी के भरोसे है. शरीर के विभिन्नकोषाणुओं का निर्माण और पोषण इसी के जरिये होता है. नये चिकित्सीय तरीकों में इस खून –रस को रक्ताणुओं से अलग कर सुखा लिया जाता है. शरीर में खून की कमी होने पर  संचित रक्त-रस देकर खून की कमी से जूझ रहे लोगों के जीवन की रक्षा की जाती है. असल में यह खून का मूल आधार है. 

रक्ताणु

खून में दिखने वाले गोल, लम्बे और बीच से चिपके कण रक्ताणु कहलाते हैं. एक-दूसरे से अलग रहने पर इन अणुओं का रंग पीला दिखता है लेकिन एक साथ यह लाल रंग का दिखायी देता है. सामान्य व्यक्ति के खून की एक बूँद में लगभग ऐसे 50 लाखकण एक-दूसरे से चिपके होते हैं. इन अणुओं के अंदर हीमोग्लोबिन नामक एक लाल रंग का पदार्थ होता है. इसी कारण से रक्ताणुओं का रंग लाल दिखायी पड़ता है. इन अणुओं यानी रक्ताणुओं में वायु के ऑक्सीजन को आकर्षित करने का एक विशेष गुण है. लाल कण इसी की सहायता से रक्त-रस में ऑक्सीजन मिलाते हैं. लाल कण खून से कार्बन डाइ ऑक्साइड और अवांछित जल को भी अलग करते हैं. 

श्वेताणु

खून के सफेद कण लाल कणों से बड़े, विभिन्न आकार के कहीं लम्बे और गोल पाँच प्रकार के होते हैं. इनकी संख्या लाल कणों से कम होती है. खून की एक बूँद में लगभग आठ से दस हजार श्वेताणु होते हैं. इस संख्या से अधिक होने पर शरीर पीला और कमजोर हो जाता है. श्वेताणुओं का मुख्यकार्य शरीर को बीमारियों के आक्रमण से बचाना है. रोग की अवस्था में उनकी संख्या बढ़ जाती है और वे रोगाणुओं को नष्ट करने लगते हैं. अगों में चोट लगने पर ये श्वेताणु ही हैं जो घाव को जल्दी-जल्दी भरकर ठीक कर देते हैं. श्वेताणुओं के कारण ही बाहर के कीटाणु शरीर के अंदर प्रवेश नहीं कर पाते. शरीर के अंगों पर कभी दिखने वाले मवाद या पपड़ी श्वेताणुओं के कारण ही होता है. इनके निर्बल एवं निर्जीव होने पर ही बाहरी कीटाणु का हमारे शरीर पर आक्रमण सफल हो पाता है. 

 

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