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साइन्स के लिए सर्वश्रेष्ठ योग

साइन्स की बीमारी हर किसी को तकलीफ देती है, अगर आप इससे छुटकारा पाना चाहते हैं, तो नियमित रूप योग करें, Yoga Poses for Sinus Treatment.

साइन्स नाक से संबंधित समस्या है। यह समस्या सर्दी के मौसम में अधिक होती है। इसके कारण नाक बंद होना, सिर दर्द, आधे सिर में बहुत तेज दर्द होना, नाक से पानी गिरना आदि इसके प्रमुख लक्षण है। इसके अलावा हल्का बुखार, आंखों में पलकों के ऊपर या दोनों किनारों पर दर्द रहता है। तनाव के कारण चेहरे पर सूजन भी आती है। यहीं रोग आगे चलकर अस्थमा, दमा जैसी गंभीर बीमारियों में भी बदल सकता है। लेकिन कुछ सर्वश्रेष्ठ योग करके आप साइन्स से छुटकारा पा सकते हैं। आइये जानते हैं साइन्स के लिए सर्वश्रेष्ठ योग के बारे में।

साइन्स के लिए सर्वश्रेष्ठ योग

कपालभाति

साइन्स के लिए सर्वश्रेष्ठ योग - कपालभाति

कपालभाती दो शब्दों से मिलकर बना है कपाल और भाति कपल का अर्थ होता है खोपड़ी और भाति का अर्थ होता है चमकदार। इस क्रिया से सिर चमकदार बनता है, इसलिए इसे कपालभाति के नाम से जाना जाता है।

कपालभाति करने की विधि

1. सबसे पहले किसी भी ध्यान पूरक आसन में बैठ जाएं।
2. अब सांस ले जिससे आपका पेट फुल जाएं और पेट की मांसपेशियों को बल के साथ सिकोड़ते हुए सांस छोड़ दें।
3. सांस धौंकनी के समान चलनी चाहिए।
4. इस क्रिया को तेजी से कई बार दोहराएं इसको करते समय पेट फूलना और सुकड़ना चाहिए।
5. शुरू में इसे दो से तीन मिनट और बाद में दस मिनट तक करें।

कपालभाति करने के लाभ

1. यह साइन्स समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए अद्भुत योग है।
2. अगर आप इसे 10 मिनट तक जारी रखते हो, तो यह वजन घटाने में मदद करता है।
3. यह सर्दी, खांसी, नासिकाशोथ, साइनसिस और श्वसन संबंधी समस्याओं के उपचार में सहायक है।
4. स्मृति को बढ़ाने के लिए यह उपयोगी है।

सुत्र नेति 

अपने शरीर का अगर आप शुद्दिकरण करना चाहते हो, तो उसका सबसे आसन तरीका होता है सूत्र नेति। इस मानव रूपी यंत्र को क्रियाशील बनाये रखने के लिए इसकी सफाई और शोधन की आवश्यकता होती है। मनुष्य के शरीर रूपी यंत्र का बाह्य शोधन आनन के जरिये हो जाता है। शोधन करने के लिए हमें अनेक प्रकार की क्रिया को करना पड़ता है। नासिका के द्वारा सांस ली जाती है, जो हमारे प्राणों के लिए बहुत ही आवश्क होती है। मानव को प्रणायाम के बाद क्रियाओ को भी करना सीखना चाहिए। ये क्रिया थोड़ा कठिन होता है, लेकिन नियमित अभ्यास से आप इसे सीख जाते हैं।

सुत्र नेति की विधि

1. इस क्रिया को करने के लिए एक मोटा, लेकिन कोमल धागा लें, जिसकी लम्बाई बारह इंच या डेढ़ फुट के आसपास हो और इस बात का ख्याल रखें कि वो आपकी नासिका के छिद्र में आसनी से जा सकें।
2. अब इस धागे को गुनगुने पानी में भिगो लें और इसका एक छोर नासिका छिद्र में डालकर मुंह से बाहर निकालें।
3. यह प्रकिया बहुत ही ध्यान से करें। फिर मुंह और नाक के डोरे को पकड़ कर धीरे-धीरे दो या चार बार ऊपर नीचे खीचना चाहिए।

सूत्र नेति के लाभ

1. इसको करने से हमारी आखों की दृष्टि तेज होती है।
2. जब हम इस क्रिया को लगातार करते हैं, तो हमें सर्दी, जुकाम, और खांसी की शिकायत नहीं रहती।
3. यह क्रिया हमारे सम्पूर्ण शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होती है।
4. जब हम इस क्रिया को करते हैं, तब हमारे दिमाग का भारीपन और तनाव दूर हो जाता है, जिससे हमारा दिमाग शांत, हल्का और सेहतमंद रहता है।

जलनेति 

जलनेति एक महत्वपूर्ण शरीर शुद्धि योग किया है,जिससे नाक की सफाई होती है। यह आपको साइन्स, सर्दी, जुकाम, प्रदूषण आदि से बचता है। जलनेति में नमक वाला गुनगुना पानी इस्तेमाल होता है। इसमें पानी को नेटिपोट से नाक के एक छिद्र से डाला जाता है और दुसरे नाक से निकाला जाता है।

जलनेति की विधि

1. सबसे पहले आप ऐसा नेति लोटा लें जो आसानी से नाक में घुस जाएं।
2. नेति लोटे में आधा लिटर गुनगुना नमकीन पानी और एक चम्मच नमक डाल दें।
3. अब आप कागासन में बैठें और अपने पैरों में डेढ़ फुट की दुरी बनाएं।
4. कमर से आगे की ओर झुकें नाक का जो छिद्र उस समय अधिक सक्रिय हो सिर को उसके विपरीत दिशा में घुमाएं।
5. अब आप नेति लोटा की टोंटी को नाक के सक्रिय छिद्र में डाल लें।
6. अपना मुंह खोल कर रखें ताकि सांस लेने में परेशानी न हो।
6. पानी को एक नाक के छिद्र में डाले और दुसरे से बाहर निकाल दें।
7. जब आधा पानी खत्म हो जाएं तो लोटा नीचे रख दें और अपना नाक साफ़ करें। अब दुसरे छिद्र से इस क्रिया को करें।

जलनेति के लाभ

1 अगर आप सिर दर्द से परेशान है तो इस क्रिया को करें आपको राहत मिलेगी।
2. इससे नियमित रूप से करने से मेमरी बढती है।
3. यह बालो को गिरने से रोकने में मदद करता है।
4. यह क्रिया नाक रोग में बहुत फायदेमंद होती है।

भस्त्रिका प्राणायाम

भस्त्रिका शब्द भस्त्र शब्द से निकला है, जिसका अर्थ होता है धौंकनी। वास्तविक तौर पर यह प्राणायाम एक भस्त्र की तरह काम करता है। धौंकनी के जोड़े की तरह ही यह ताप को हवा देता है। भौतिक और सूक्ष्म शरीर को गर्म करता है।

भस्त्रिका की विधि

1. सबसे पहले आप किसी आराम अवस्था में बैठे ध्यान रहें कि आपकी गर्दन, शरीर और सिर सीधा हो।
2. शुरू शुरू में धीरे-धीरे सांस लें और सांस बलपूर्वक छोड़े।
3. यह क्रिया लोहार की धौंकनी की तरह फुलाते और पिचकाते हुए होना चाहिए।
4. इस तरह से तेजी के साथ 10 बार बलपूर्वक श्वास लें और छोड़े।
5. इस अभ्यास के दौरान आपकी ध्वनि सांप की हिसिंग की तरह होनी चाहिए।
6. दस बार श्वसन के पश्चात अंत में श्वास छोड़ने के बाद यथासंभव गहरा श्वास लें।
7. श्वास को छोड़कर कुंभव करें।
8. फिर उसे धीरे-धीरे श्वास को छोड़े।
9. इस गहरे श्वास छोड़ने के बाद भस्त्रिका प्राणायाम का एक चक्र पूरा हुआ।

भस्त्रिका के लाभ

1. यह आसन वजन को कम करता है।
2. इससे बलगम खत्म होती है।
3. इस आसन को करने से गले की सुजन घटती है।
4. इससे श्वास समस्या दूर होती है।

अनुलोम विलोम प्राणायाम

अनुलोम विलोम एक तरह का प्राणायाम है, जिसे करने से कई बीमारीयों से आराम मिलता है। इसमें अनुलोम का अर्थ है सीधा और विलोम का अर्थ होता है उल्टा। अनुलोम विलोम में बार बार सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया को दोहराया जाता है।

अनुलोम विलोम करने की विधि

1. किसी खुली हवा में दरी बिछा लें।
2. अब उस दरी पर अपनी कमर को एकदम सीधा करके आलथी-पलथी मार कर बैठ जाएं।
3. अब दाएं हाथ के अंगूठे से नाक के दाएं छेद को बंद करें और बाएँ नाक से सांस अंदर की और खीचें और फिर बंद नाक  यानि दाई नाक को धीरे-धीरे खोलते हुए उससे सांस को बाहर की ओर धीरे-धीरे छोड़ें।
4. ठीक उसी प्रकार अब बाएं हाथ के अंगूठे से नाक के बाएं छेद को बंद करें और दाएं नाक से सांस अंदर की ओर धीरे-धीरे खीचें और फिर बंद नाक यानि बाएं नाक को धीरे-धीरे खोलते हुए उससे सांस को बाहर की ओर छोड़े।
5. इस क्रिया को कम से कम दस बार करें।

अनुलोम विलोम करने के लाभ

1. नियमित अभ्यास से शरीर स्वस्थ और निरोग रहता है।
2. इससे स्मरण शक्ति बढती है।
3. नियमित अभ्यास से फेफड़े स्वस्थ रहते हैं।
4. इससे दिल स्वस्थ रहता है।

 

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